रविवार को भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार जब सिरसागंज के गांधी मंडी स्थित अपनी ननिहाल, पीली कोठी पहुंचे, तो बचपन की यादें फिर से ताजा हो गईं। कार्यक्रम का माहौल पारिवारिक आयोजन जैसा नजर आया। बचपन की शरारतों और अनुभवों को साझा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने सभी को भावुक कर दिया। उनके माता-पिता की आंखें भी नम हो गईं।
भव्य स्वागत और पारिवारिक माहौल
मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ उनके पिता डॉ. सुबोध गुप्ता, मां सत्यवती देवी और पत्नी अनुराधा भी थीं। ननिहाल में मामा सुरेंद्र मैरोठिया और परिवार ने बैंडबाजे के साथ फूल बरसाकर उनका स्वागत किया। माथुर वैश्य महिला मंडल ने ईश वंदना प्रस्तुत की, जबकि माथुर वैश्य महासभा के सदस्यों ने मालाएं पहनाकर और पीत पट्टिका भेंटकर सम्मान किया।
बचपन की यादें: शरारतों से भरा समय
ज्ञानेश कुमार ने कहा कि सिरसागंज का मैदान उनके बचपन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने मामा के साथ कुश्ती लड़ी और पतंग उड़ाने के दौरान पतंग कटने पर घर के सभी बल्ब पीसकर मांझा बनाया था। इसके लिए उन्हें डांट पड़ी, लेकिन नाना ने उन्हें बचा लिया।
उन्होंने सिरसा नदी पर टेसू के विसर्जन और खेतों से तरबूज-ककड़ी तोड़ने की शरारतों को भी याद किया। ये यादें सुनाते हुए वहां मौजूद सभी लोग उनके बचपन के अनुभवों में डूब गए।
अमेरिका में पढ़ाई छोड़ने की वजह
मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि हाईस्कूल और इंटर में यूपी टॉपर होने के बाद उन्हें आईआईटी कानपुर में दाखिला मिला। इसके बाद अमेरिका में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति भी मिली, लेकिन माता-पिता के साथ रहने की इच्छा ने उन्हें विदेश जाने से रोक दिया। आईएएस बनने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग केरल में हुई, जहां उन्होंने 14 साल सेवा दी। इसके बाद उनका तबादला दिल्ली हो गया।
चुनाव आयोग: देश की सबसे बड़ी सरकारी मशीनरी
ज्ञानेश कुमार ने बताया कि चुनाव आयोग देश की सबसे बड़ी सरकारी मशीनरी है, जिसमें 50 लाख से अधिक अधिकारी और कर्मचारी शामिल होते हैं। चुनाव संपन्न होने के बाद ये कर्मचारी अपने मूल विभागों में वापस लौट जाते हैं।
युवाओं से मतदान की अपील
सिरसागंज भ्रमण के दौरान उन्होंने 18 वर्ष से अधिक उम्र के युवाओं से अपना मतदाता पहचान पत्र बनवाने और मतदान के प्रति जागरूक होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हर युवा को मतदान के दिन बूथ पर जाकर अपने अधिकार का उपयोग करना चाहिए।
मुख्य चुनाव आयुक्त की इस यात्रा ने न केवल पारिवारिक यादों को फिर से जीवित किया, बल्कि लोगों को लोकतंत्र के प्रति जागरूक होने का भी संदेश दिया।