फिरोजाबाद, चूड़ियों का शहर, जहां कभी कांच की खनक हर गली में गूंजती थी, जैन मंदिर के सफेद पत्थरों की चमक और मेले की रौनक के लिए जाना जाता था। मंदिर, शहर का दिल, जहां भगवान बाहुबली स्वामी की 45 फीट ऊंची मूर्ति हर अनुयाई और पर्यटक का मन मोहती है। लेकिन इस बार, मैं, जब कई महीनों बाद अपनी माटी में लौटा, तो एक नए तमाशे के सामने खड़ा था—72 करोड़ 70 लाख के ‘छाते’ का! हां, छाता, क्योंकि हमारे दूरदर्शी विधायक जी ने सुहाग नगर के सी एल जैन कॉलेज से शुरू होकर, जैन मंदिर को ढकता हुआ, एस पी सिटी कार्यालय तक जाने वाला एक ओवरब्रिज का शिलान्यास किया है। नाम? विकास। वजह? जाम। और जाम भी कैसा? ट्रैफिक लाइट की दो मिनट की सैर, जो विधायक जी को हिमालय का गड्ढा दिख गया।
लेकिन रुकिए, ये तो बस शुरुआत थी। खबरों की खनक तो सुनिए—फिरोजाबाद से पांच किलोमीटर पहले, राजा के ताल के पास, ‘नया फिरोजाबाद’ बसने जा रहा है! विधायक जी के चाहने वालों ने वहां जमीन खरीद ली है, और सुनते हैं, वो होगा शहर का पोश एरिया। पैसे वाले सब वहां शिफ्ट होंगे—एयर-कंडीशंड बंगले, मॉल, और शायद कोई प्राइवेट बीच भी! बाकी जनता? अरे, वो तो जैन मंदिर के छाते की छांव में खुश रहेगी। क्या खूब विकास है!
मैं बस से उतरा, जैन मंदिर के सामने की चहल-पहल में खड़ा था। चूड़ियों की दुकानों पर धूल जमी थी। तभी बेकाम बाबू, जो हमेशा खबरों के साथ चाय की चुस्की लेते हैं, ने दूर से लपककर मुझे पकड़ लिया। “गर्वित भैया, गजब हो गया! फिरोजाबाद तरक्की की राह पर है। सुहाग नगर से जैन मंदिर होते हुए एस पी सिटी कार्यालय तक पुल बनेगा। फिर उसे नगला बरी वाले पुराने पुल से जोड़कर आसफाबाद तक ले जाएंगे। और सुनो, राजा के ताल पर नया फिरोजाबाद बसेगा! वहां बड़े-बड़े लोग रहेंगे, शहर की शान बढ़ेगी!” उनकी आंखों में चमक थी, जैसे वो खुद विधायक जी के रियल एस्टेट एजेंट बन गए हों।
मैंने सोचा, वाह, विकास! लेकिन तभी चिलम का कश लेते हुए बेनाम चचा आ टपके, जैसे कोई क्रांतिकारी सभा में घुस आए हों। “अरे, ये कैसा विकास? चूड़ी उद्योग तो मर रहा है। कारीगर भूखे, फैक्ट्रियां बंद। 72 करोड़ से गड्ढे भर दो, कोई कारखाना खोल दो, या आगरा से पर्यटक लाने को कोई म्यूजियम बना दो। और ये नया फिरोजाबाद? वो तो अमीरों का ठिकाना है। हम जैसे लोग तो इस छाते के नीचे ही दब जाएंगे!” चचा की बात में दम था। फिरोजाबाद की चूड़ियां, जो कभी दुनिया की कलाइयों पर खनकती थीं, अब कबाड़खानों में पड़ी सिसक रही हैं। मजदूर पलायन कर रहे हैं, और शहर की अर्थव्यवस्था चूड़ियों की तरह ही टूट रही है।
तभी गोलगप्पे का ठेला लगाए जैन साहब, जो हमारी बहस को मजे ले-लेकर सुन रहे थे, बोले, “अरे भैया, तुम लोग क्या जानो? दोपहर को जैन मंदिर के सामने इतनी धूप पड़ती है कि खड़ा होना मुश्किल। पुल बनेगा, तो छांव तो मिलेगी। और हां, बाहुबली स्वामी की 45 फीट की मूर्ति के दर्शन भी पुल से आते-जाते हो जाएंगे। मंदिर में घुसने की जरूरत ही नहीं! मेले में पर्यटक आएंगे, मेरे गोलगप्पे खाएंगे।” जैन साहब की बात सुनकर मैं हंस पड़ा। 72 करोड़ का ये छाता तो धूप भगाने के साथ-साथ मुफ्त दर्शन का जुगाड़ भी है!
लेकिन बेकाम बाबू कहां मानने वाले? उन्होंने जोश में कहा, “देखो चचा, ये छाता जाम खत्म करेगा। गाड़ियां फर्राटे मारेंगी। और नया फिरोजाबाद? वो तो फिरोजाबाद को दिल्ली बना देगा। वहां बड़े लोग आएंगे, बिजनेस बढ़ेगा।” चचा ने चिलम का एक लंबा कश खींचा और तंज कसा, “हां, और हम जैसे लोग पुराने फिरोजाबाद में गड्ढों और छाते के नीचे रह जाएंगे। चूड़ी बेचने वाले मजदूर उसी पुल पर चाय का ठेला लगाएंगे। नया फिरोजाबाद में तो शायद चूड़ियां भी इम्पोर्टेड बिकेंगी!” जैन साहब ने गोलगप्पे का पानी छींटते हुए ठहाका लगाया, “चिंता मत करो। मेले में पर्यटक आएंगे, बाहुबली को देखेंगे, छाते की छांव में गोलगप्पे खाएंगे। मेरी दुकान तो चलेगी।”
मैं सुनता रहा, सोचता रहा। जैन मंदिर, जो फिरोजाबाद का गौरव है, अब एक ओवरब्रिज की छाया में दबने जा रहा है। बाहुबली स्वामी की मूर्ति, जिसके दर्शन के लिए लोग मीलों पैदल चलकर आते हैं, अब पुल पर फर्राटा मारती गाड़ियों से दिखेगी। और नया फिरोजाबाद? वो तो शायद विधायक जी का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक है। पैसे वाले वहां मॉल और बंगलों में मजे करेंगे, और पुराना फिरोजाबाद छाते की छांव और गड्ढों की धूल में सिसकता रहेगा। क्या खूब तमाशा है! विधायक जी ने शायद सोचा, धूप और जाम की समस्या खत्म, तो शहर की सारी मुसीबतें खत्म। लेकिन चूड़ी उद्योग? वो तो अब बस कहानियों में बचा है।
कभी फिरोजाबाद की हर गली में कांच की चमक और खनक थी। आज उन गलियों में सिर्फ गड्ढे और धूल बचे हैं। 72 करोड़ से गड्ढे भर सकते थे, कोई नया कारखाना खोल सकते थे, या आगरा से पर्यटक लाने को कोई चमकदार पर्यटन स्थल बना सकते थे। लेकिन नहीं, हमें तो छाता चाहिए! और ऊपर से नया फिरोजाबाद, जहां चूड़ियों की खनक नहीं, बल्कि एसी की ठंडी हवा और कॉफी शॉप की महक होगी। बेकाम बाबू ने फिर सपना बुनना शुरू किया, “गर्वित भैया, सोचो, नए पुल पर शायद कोई बड़ा सेल्फी पॉइंट बने। ‘72 करोड़ के छाते’ के ऊपर लोग फोटो खींचेंगे, और ऊपर से ही बाहुबली स्वामी के दर्शन करेंगे। जैन साहब बीच में टपके, “और नीचे लोग छांव में चाट और गोलगप्पे खाएंगे।” चचा ने भी तड़का लगाया, “हां, और कैप्शन लिखेंगे—‘फिरोजाबाद, जहां चूड़ियां टूटती हैं, अमीर नया शहर बसाते हैं, और बाकी जनता छाते की छांव में सिसकती है!’”
जैन साहब ने ठहाका लगाया, “अरे, मेले में मेरे गोलगप्पे की दुकान के सामने भी सेल्फी पॉइंट बनवा देंगे। बाहुबली को देखो, गोलगप्पे खाओ, छांव में बैठो।” मैं चुपके से हंसा। शायद विधायक जी का ये छाता और नया फिरोजाबाद फिरोजाबाद की तकदीर बदल दे। चूड़ियां न सही, गोलगप्पे तो बिकेंगे। बाहुबली के दर्शन फ्री में होंगे, और धूप से छुटकारा भी मिलेगा। लेकिन मन में एक सवाल कोंचता रहा—72 करोड़ का ये छाता क्या वाकई फिरोजाबाद की धूप भगाएगा, ट्रैफिक से निजात दिलाएगा या सिर्फ जैन मंदिर की शांति और चूड़ियों की खनक को हमेशा के लिए दबा देगा? खैर, जय हो विधायक जी की, उनके छाते की, और उनके नए फिरोजाबाद की!
तमाशबीन
गौरव गर्वित
मुख्य सचिव, प्रज्ञा हिंदी सेवार्थ संस्थान ट्रस्ट