राधा और कृष्ण के प्रेम के रस में डूबे अधिकांश लोग यही मानते हैं कि उनका विवाह कभी नहीं हुआ। लेकिन गौड़ीय संप्रदाय में यह विश्वास किया जाता है कि राधा और कृष्ण का विवाह हुआ था। इसी कारण गौड़ीय परंपरा में राधा को ‘श्रीमती राधा’ कहा जाता है, जबकि ब्रज में ‘श्रीराधा’ संबोधन प्रचलित है। इन दोनों मतों के बीच यह विमर्श सदैव बना रहता है कि क्या वास्तव में राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था।
भांडीरवन का महत्व
भांडीरवन, ब्रज का ऐसा पावन स्थल है, जो राधा-कृष्ण के प्रेम और विवाह का साक्षी माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि स्वयं ब्रह्माजी ने भांडीरवन में राधा-कृष्ण का विवाह संपन्न कराया। यह वन आज भी उनकी विवाह गाथा को जीवंत करता है।
पौराणिक संदर्भ
ब्रह्मवैवर्त पुराण, गर्ग संहिता और गीत गोविंद में भांडीरवन में राधा-कृष्ण के विवाह का उल्लेख है। मथुरा से लगभग 30 किलोमीटर दूर छारी गांव के पास यमुना किनारे स्थित यह वन लगभग छह एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ कदंब, खंडिहार और हींस जैसे प्राचीन वृक्ष हैं।भांडीरवन में स्थित बिहारी जी का मंदिर सबसे प्राचीन माना जाता है। यहां भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें श्रीकृष्ण राधा की मांग भरते हुए दिखाए गए हैं। मंदिर के सामने एक प्राचीन वटवृक्ष है, जिसके नीचे राधा-कृष्ण के विवाह का आयोजन हुआ था।
विवाह की कथा
एक दिन नंद बाबा बालक कृष्ण को गोद में लिए भांडीरवन पहुंचे। वहां अचानक तेज तूफान आया, जिससे नंद बाबा घबरा गए और कृष्ण को लेकर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए। तभी देवी राधा वहां पहुंचीं। नंद बाबा, राधा-कृष्ण को देव स्वरूप मानते हुए कृष्ण को राधा की गोद में सौंपकर वहां से चले गए। इसके बाद श्रीकृष्ण ने अपना दिव्य रूप धारण किया। उनकी इच्छा से ब्रह्माजी वहां आए और उन्होंने राधा-कृष्ण का विवाह संपन्न कराया।
भांडीरवन का पौराणिक कूप
भांडीरवन में एक पौराणिक कूप भी है, जिसका संबंध कृष्ण द्वारा सभी तीर्थों का आह्वान कर उसमें स्नान करने की कथा से जुड़ा है। यह कूप आज भी विद्यमान है और सोमवती अमावस्या के दिन यहां श्रद्धालु स्नान और आचमन करते हैं।
कैसे पहुंचें भांडीरवन
मथुरा से भांडीरवन की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। वृंदावन होते हुए मांट पहुंचा जा सकता है। यहां से राया-नौहझील मार्ग पर छारी गांव स्थित है। छारी गांव से भांडीरवन की दूरी लगभग एक किलोमीटर है। निजी वाहन वाले सीधे मंदिर तक जा सकते हैं, जबकि अन्य श्रद्धालु यह दूरी आसानी से पैदल तय कर सकते हैं।
भांडीरवन न केवल राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम का प्रतीक है, बल्कि उनके विवाह की गाथा को भी सजीव करता है। यह स्थल आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है।