भारत में कुछ साल पहले तक यही माना जाता था कि ‘पद्म पुरस्कार’ ज़्यादातर उन्हीं को मिलते हैं जिनकी सत्ता के गलियारों में पकड़ हो. बॉलीवुड या फिर खेल से जुड़ी कोई बड़ी हस्ती हो या फिर हवाई जहाज़ के बिज़नेस क्लास में सफ़र करने वाला शख़्स. इस दौरान अवॉर्ड पाने वाले वही लोग होते थे जो सत्ता के केंद्र दिल्ली या फिर चमक-दमक वाले शहर मुंबई से होते थे. लेकिन पिछले कुछ सालों से ये सिलसिला पूरी तरह से बदला चुका है. आज आम आदमी भी देश के इन सर्वोच्च पुरस्कारों से नवाजे जा रहे हैं. देश के कई गुमनाम नायकों की कहानियां आज लोगों को प्रेरित कर रही हैं, लेकिन आज देश के उन रियल हीरोज़ को सम्मानित किया जा रहा है जो अब तक गुमनाम थे.

बीते मंगलवार को राष्ट्रपति भवन के ऐतिहासिक ‘दरबार हॉल’ में ‘पद्म पुरुस्कार’ के विजेताओं को सम्मानित किया जा रहा था. इस दौरान जब 77 वर्षीय तुलसी गौड़ा (Tulsi Gowda) का नाम पुकारा गया तो उन्हें देखकर हर किसी की आखें फटी की फटी रह गई. कैमरों के चमकते फ्लैश और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच राष्ट्रपति भवन के रेड कार्पेट पर फटी पुरानी धोती पहने नंगे पैर तुलसी गौड़ा को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से ‘पद्मश्री पुरस्कार’ ग्रहण करता देख लोग हैरान थे. देश के न्यूज़ चैनलों पर इस बात की बहस चल रही थी कि आख़िर एक काबिल इंसान इतना साधा जीवन कैसे जी सकता है?

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) के हाथों देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से नवाजी जा रही तुलसी गौड़ा को गौर से देखिए. बदन पर कपड़े के नाम पर मानो कोई चादर चपेटी हो. राष्ट्रपति भवन के ऐतिहासिक ‘दरबार हॉल’ में नंगे पैर ‘रेड कार्पेट’ पर दस्तक देने वाली तुलसी गौड़ा के सम्मान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसी हस्तियां भी हाथ जोड़े अभिवादन करते नज़र आये.

कौन हैं तुलसी गौड़ा? 

कर्नाटक के होनाली गांव की रहने वाली तुलसी गौड़ा एक पर्यावरण योद्धा हैं. तुलसी गौड़ा पिछले 60 सालों से पर्यावरण सुरक्षा की अलख जगा रही हैं. ‘हलक्की जनजाति‘ से ताल्लुक रखने वाली गौड़ा का जन्म कर्नाटक के होनाली के एक ग़रीब आदिवासी परिवार में हुआ था. ग़रीबी के चलते वो कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन उन्हें जंगल में पाए जाने वाले पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों के बारे में इतनी जानकारी है कि उन्हें ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ फॉरेस्ट’ भी कहा जाता है.

लगा चुकी हैं 30 हज़ार से अधिक पेड़-पौधे  

तुलसी गौड़ा जब केवल 3 साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया था. वो 12 साल की उम्र से ही अपनी मां के साथ एक नर्सरी में काम करने लगी थीं. वहीं से उनके मन में पेड़-पौधों के प्रति लगाव पैदा हो गया था. तुलसी गौड़ा पिछले 6 दशकों में 30 हज़ार से अधिक पेड़-पौधे लगा चुकी हैं. आज वो अपने ज्ञान के खजाने को नई पीढ़ी के साथ साझा कर रही हैं और देश में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रही हैं.

77 साल की उम्र में भी तुलसी गौड़ा एक अस्थायी स्वयंसेवक के तौर पर ‘वन विभाग’ की नर्सरी की देखभाल करती हैं. इस दौरान वो कई तरह के पौधों के बीजों को इकट्ठा करती हैं, गर्मियों के मौसम तक उनका रखरखाव करती हैं और फिर सही समय पर इस बीज को जंगल में बो देती हैं.

मिल चुके हैं ये बड़े अवॉर्ड्स  

तुलसी गौड़ा को इससे पहले भी ‘पर्यावरण संरक्षण’ के उनके प्रयासों के लिए ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड’, ‘राज्योत्सव अवॉर्ड’ और ‘कविता मेमोरियल’ जैसे कई अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है. अपना पूरा जीवन उन्‍होंने ‘पर्यावरण संरक्षण’ के लिए समर्पित करने वाली तुलसी गौड़ा को अब ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया गया है.

पद्मश्री तुलसी गौड़ा की सादगी भरी तस्वीर जब से सोशल मीडिया पर वायरल हुई है लोग उनकी सादगी, मेहनत और समर्पण की चर्चा कर रहे हैं. ‘साधा जीवन उच्च विचार’... ये कहावत भले ही 21वीं सदी में फिट नहीं बैठती हो, लेकिन तुलसी गौड़ा इसकी मिसाल हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here