पाकिस्तान की शिकायत रही है कि जो बाइडन ने अमेरिका की सत्ता संभालने के बाद से प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को एक फ़ोन तक नहीं किया है.
इसकी शिकायत पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ़ तक ने की है.
लेकिन अमेरिका पर पाकिस्तान की इन शिकायतों का कोई असर नहीं हुआ और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इमरान ख़ान से अब तक कोई बात नहीं की है.
पिछले महीने जब अमेरिका ने लोकतंत्र समिट में शामिल होने के लिए पाकिस्तान को आमंत्रित किया तो ऐसा लग रहा था कि दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ़ कुछ हद तक पिघलेगी.
वर्चुअल लोकतंत्र समिट का आयोजन अमेरिका की अगुआई में नौ और 10 दिसंबर को किया गया है. आज इस समिट का आख़िरी दिन है. लेकिन इस समिट में शामिल होने से पाकिस्तान ने इनकार कर दिया. ऐसा तब है जब दक्षिण एशिया से भारत, पाकिस्तान, मालदीव और नेपाल को ही बुलाया गया था. बांग्लादेश और श्रीलंका को इसमें नहीं बुलाया गया था.
पाकिस्तान का इनकार
बाइडन प्रशासन ने 110 देशों कों इस समिट में आमंत्रित किया है. इसमें चीन, रूस और तुर्की को भी आमंत्रित नहीं किया गया है जबकि ताइवान को बुलाया गया है. ताइवान को बुलाने पर चीन ने सख़्त आपत्ति जताई थी. कहा जा रहा है कि पाकिस्तान ने इस समिट में शामिल नहीं होने का फ़ैसला चीन के कारण किया है. ये भी कहा जा रहा है कि अमेरिका से ख़राब रिश्तों के बीच पाकिस्तान का यह रुख़ द्विपक्षीय संबंधों को और बिगाड़ देगा.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने घंटों के परामर्श के बाद एक प्रेस रिलीज़ जारी किया और स्पष्ट किया वो इसमें शामिल नहीं होगा. पहले कहा जा रहा था कि पाकिस्तान राष्ट्रपति बाइडन की इस पहले में अपने किसी मंत्री को भेज देगा लेकिन आख़िरकार इसमें नहीं शामिल होने का फ़ैसला किया.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ में कहा गया है, ”अमेरिका के साथ हमारी साझेदारी मायने रखती है और हम उम्मीद करते हैं कि क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में विस्तार होगा. हम लोकतंत्र और मानवाधिकार के मुद्दों पर अमेरिका से संपर्क में रहेंगे. हम भविष्य में इस तरह की पहल में शामिल होने की उम्मीद करते हैं.”
‘पाकिस्तान असली भाई’
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के इस बयान को ट्वीट करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजिअन ने लिखा है, ”पाकिस्तान ने लोकतंत्र समिट में शामिल होने से इनकार कर दिया. एक असली और मज़बूत भाई!”
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की इस टिप्पणी से साफ़ है कि चीन पाकिस्तान के इनकार से ख़ुश है. इसे लेकर पाकिस्तानी मीडिया में जो रिपोर्ट छपी है, उसमें भी कहा गया है कि पाकिस्तान के इनकार के पीछे की सबसे बड़ी वजह चीन है.
पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा है, ”एक बड़ी वजह है, इस समिट में चीन को नहीं बुलाना. दोनों देशों के बीच जिस तरह का संबंध है, उसे देखते हुए इस्लामाबाद ने इस समिट से ख़ुद को दूर रखा. एक बड़ा कारण यह भी है कि राष्ट्रपति बाइडन ने पाकिस्तानी पीएम इमरान ख़ान की उपेक्षा की है, ऐसे में पाकिस्तान के लिए शामिल होना बहुत सहज स्थिति नहीं थी. पिछले साल सत्ता में आने के बाद से बाइडन ने इमरान ख़ान से बात तक नहीं की है. लेकिन अमेरिका से इस आमंत्रण को रिश्तों पर जमी बर्फ़ पिघलाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा था.”
एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा है, ”यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान के इस फ़ैसले के पीछे चीन है लेकिन आधिकारिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि इस मामले में पाकिस्तान ने चीन से संपर्क किया था. पाकिस्तान के इनकार से साफ़ होता है कि अमेरिका से द्विपक्षीय रिश्ते किस हद तक ख़राब हैं. पाकिस्तान को ये भी डर है कि अमेरिका लोकतंत्र और मानवाधिकारों का हवाला देकर प्रतिबंध भी लगा सकता है.”
पाकिस्तान का फ़ैसला सही या ग़लत?
पाकिस्तान के इस फ़ैसले पर वहाँ के राजनयिक और पत्रकारों की भी प्रतिक्रिया आ रही है. भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने ट्वीट किया है, ”लोकतंत्र समिट में पाकिस्तान का नहीं जाना एक संतुलित और चौकस फ़ैसला मालूम पड़ता है.” बासित के इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए पाकिस्तान के पत्रकार कामरान यूसुफ़ ने लिखा है, ”चौकस? ऐसा लगता है कि हमने ख़ुद को एक कोने में रख लिया है!”
कामरान यूसुफ़ के ट्वीट के जवाब में बासित ने लिखा है, ”पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते पहले से ही किसी कोने में पड़े हैं. अंतरराष्ट्रीय संबंध एक प्रक्रिया है न कि इवेंट. हम अपने लिए और परेशानी नहीं पैदा कर सकते. अब समय ठोस चीज़ों पर ध्यान देने का है. जो हम कर रहे हैं, उसे जानते हैं और अच्छे की उम्मीद करते हैं.”
इस मुद्दे पर अब्दुल ने बासित यूट्यूब पर एक वीडियो भी पोस्ट किया है. इस वीडियो में अब्दुल बासित ने इमरान ख़ान के लोकतंत्र समिट में शामिल नहीं होने के फ़ैसले का बचाव किया है. अब्दुल बासित ने कहते हैं, ”इस लोकतंत्र समिट को देखिए तो ऐसा लगता है कि चीन विरोधी कैंपेन है. जिन लोगों को बुलाया गया है और जिन्हें नहीं बुलाया गया है, उससे भी यही पता चलता है.”
”चीन और रूस को नहीं बुलाया गया लेकिन बांग्लादेश और तुर्की को तो बुलाना चाहिए था. लोकतंत्र का मतलब पश्चिमी लोकतंत्र होना नहीं होता है. मज़े की बात यह है कि ताइवान को भी बुलाया गया है. ताइवान को अमेरिका ने वन चाइना पॉलिसी मानने के बावजूद बुलाया है. हम ये कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि जिस समिट में चीन मौजूद ना हो और ताइवान हो, वहाँ पाकिस्तान जाए. हमें बुलाने की वजह लगती है कि अमेरिका इसके ज़रिए पाकिस्तान और चीन के रिश्तों में दरार पैदा करने की कोशिश कर रहा था. हमारा फ़ैसला बिल्कुल दुरुस्त है.”
बासित का कहना है, ”इस समिट में नहीं जाने से पाकिस्तान के रिश्ते अमेरिका से ख़राब हो जाएंगे, ऐसा नहीं लगता. रिश्ते तो पहले से ही ख़राब हैं. किसी इवेंट में शाामिल होने से संबंध अच्छे नहीं होते हैं. एक दिन में दोनों देशों के रिश्ते ठीक नहीं होने वाला है. अमेरिका अपने हितों को साधने के लिए लोकतंत्र समिट कर रहा है. इससे पहले एक जलवायु सम्मेलन हुआ था, उसमें पाकिस्तान को नहीं बुलाया गया था. लोकतंत्र समिट के ज़रिए अमेरिका ने दाना फेंकने की कोशिश की थी. लेकिन हमने बिल्कुल ठीक फ़ैसला किया. हम अब इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी नहीं हो सकती.”
लोकतंत्र समिट में शामिल नहीं होने के फ़ैसले के बाद गुरुवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने इस्लामाबाद कॉन्क्लेव 2021 को संबोधित करते हुए कहा, ”अमेरिका-चीन के ‘शीत युद्ध’ में पाकिस्तान किसी का पक्ष नहीं लेना चाहता है लेकिन दोनों के बीच तनाव को कम करना चाहते हैं.”