देव सोने और जागने की यह परंपरा भारत में युगों पुरानी है। देव सोने के काल में विवाह आदि शुभ कार्यों निषेध माने जाते हैं और देवउठनी एकादशी के बाद ही फिर विवाह आदि शुभ कार्य किए जाते हैं। देव सोने और जागने का एक निश्चित काल है। आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी को देव सोते हैं और कार्तिक में देवोप्रबोधनी एकादशी के दिन देव उठते हैं।
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# मानसून: इन दिनों देवशयनी एकादशी तक मानसून सक्रिय हो जाता है और देवउठनी एकादशी तक मानसून हट जाता है, तो इसलिए इस काल में विवाह आदि शुभ कार्यों को रोक दिया जाता था, क्योंकि प्राचीन काल में आवागमन के साधन घोड़े, बैलगाड़ी, रथ आदि थे और रास्ते कच्चे होते थे, इसलिए यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा को देखते हुए इस काल में विवाह आदि शुभकार्य रोक दिए जाते थे।

# बारिश का मौसम: इस काल में मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता था। हमारे ऋषि-महर्षि जंगलों में अपनी तपस्या स्थलियों से उठकर गांवों नगरों के निकट आ जाया करते थे क्योंकि तब जंगलों में जंगली पशुओं और हिंसक जीव-जंतुओं से भी उनको प्राणभय रहता था। जैसे ही बारिश का मौसम हटता था, तो ये लोग वापस गांवों से उठकर कर जंगलों की ओर चल देते थे। उनका यह उत्थान ही देवोत्थान कहलाता था।