नई दिल्ली:भारत इंडोनेशिया के साथ बेहद महत्वपूर्ण समझौता कर सकता है और इंडोनेशिया को गेहूं देकर उसके बदले भारत पाम ऑयल खरीद सकता है। दरअसल, इंडोनेशिया इस वक्त खाद्यान्न संकट से जूझ रहा है और भारत को पाम ऑयल की जरूरत है, लिहाजा, दोनों देश एक दूसरे की डिमांड पूरी करने के लिए व्यवस्था कर सकते हैं।

अभी तक इंडोनेशिया बगैर किसी रूकावट के पाम ऑयल का निर्यात भारत को करता आया है।

 

एक समाचार एजेंसी के मुताबिक, मामले से जुड़े दो लोगों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि, मुद्रास्फीति को रोकने वाले इन दोनों कारकों का समधान करने के लिए सहमति बन रही है। मामले से जुड़े दोनों लोगों ने कहा कि, हालांकि, भारत ने घरेलू स्तर पर इसकी पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पिछले महीने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि वैश्विक गेहूं की कीमतें आपूर्ति की चिंताओं के कारण आसमान छू रही हैं। हालांकि, अभी भी सरकार ने ‘सरकार से सरकार’ स्तर पर निर्यात का विकल्प खुला रखा है।

 

भारत ने 13 मई को “तत्काल प्रभाव से” गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। इंडोनेशिया का पाम तेल निर्यात पर 28 अप्रैल को प्रतिबंध तीन सप्ताह तक चला था। पाम तेल, अन्य खाद्य तेलों की तुलना में सस्ता, भारत में खाना पकाने का पसंदीदा माध्यम है। 2020-21 में, भारत ने 133.5 लाख टन खाद्य तेल खरीदा था, जिसमें से ताड़ के तेल की हिस्सेदारी लगभग 56% थी। वहीं, इंडोनेशिया ने भी पॉम ऑयल के निर्यात पर 23 मई को प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन घरेलू विरोध के बाद फिर से तेल का निर्यात इंडोनेशिया ने शुरू किया है। वहीं, मामले से परिचित दोनों लोगों ने कहा कि, ‘कहना मुश्किल है, कि इंडोनेशिया फिर से प्रतिबंध लगा सकता है।’

भारतीय गेहूं पर निर्भर इंडोनेशिया

इंडोनेशिया भारतीय गेहूं का आयात करने का इच्छुक है, जो कि 13 मई को विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) की अधिसूचना के अनुसार G2G सौदे के माध्यम से ही संभव है। मामले से जानकार दो लोगों में से एक ने कहा। वहीं, दूसरे व्यक्ति ने कहा कि. जकार्ता के पाम तेल निर्यात पर प्रतिबंध (इंडोनेशिया में सभी वनस्पति तेल निर्यात का लगभग एक तिहाई हिस्सा है) ने बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत को प्रमुख रूप से प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य तेल की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। एक व्यक्ति ने समझाते हुए कहा कि, ‘हालांकि इंडोनेशिया ने ताड़ के तेल के निर्यात को आसान बना दिया है, लेकिन G2G सौदे से यह सुनिश्चित हो सकता है, कि भविष्य में भी भारत को खाद्य तेल की आपूर्ति में अचानक कोई व्यवधान नहीं होगा। इसके अलावा यह एक प्रतिस्पर्धी दर भी सुनिश्चित कर सकता है’। उन्होंने कहा कि, ‘सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता मुद्रास्फीति को शांत करने के लिए खाद्य तेल जैसे आवश्यक खाद्य पदार्थों की सुनिश्चित और पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना है’।

यूक्रेन युद्ध ने खाद्य संकट बढ़ाया

मामले से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि, भारत खाद्य तेल के आयात पर अत्यधिक निर्भर है और इसे इंडोनेशिया के साथ अनुकूल आपूर्ति संपर्क सुरक्षित करना चाहिए क्योंकि वैश्विक भू-राजनीतिक स्थिति अनिश्चित है और यूक्रेन युद्ध खाद्य कीमतों को और आगे बढ़ाने के लिए लंबा हो सकता है। वहीं, भारत की खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर 7.8% पर चली गई है, जो पिछले आठ साल में उच्च स्तर पर है। खुदरा मुद्रास्फीति दृष्टिकोण पर आईसीआरए की एक रिपोर्ट में शुक्रवार को कहा गया है कि, ‘भारत सरकार द्वारा हाल ही में किए गए उपाय (दो साल के लिए 2 मिलियन टन कच्चे सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल का शुल्क-मुक्त आयात) और इंडोनेशिया के पाम तेल निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के फैसले से निकट भविष्य में ऐसी वस्तुओं की कीमतों में कमी की उम्मीद है। फिर भी, लगातार बदल रहे जियो पॉलिटिक्स और और भारत की उच्च आयात निर्भरता खाद्य तेल की कीमतों में उल्लेखनीय सुधार को रोक सकती है’।