भारत परंपराओं का देश है, यहां हर चार कदम पर आप नई कला और संस्कृति से रूबरू होते हैं। कभी-कभी तो हर कला अच्छी लगती है और कभी-कभी बहुत सारी परंपराओं पर सवाल खड़े हो जाते हैं।इन्हीं में से एक परंपरा है विधवाओं का रंगीन कपड़े ना पहनना या फिर उनके अच्छे खान-पान से साथ छूट जाना। हमेशा एक सवाल इंसान के जेहन में आता है कि ऐसा क्यों हैं? अगर किसी महिला का पति उसका साथ छोड़कर चला जाये तो सारी उम्र उस महिला को वनवास के रूप में जीना पड़ेगा यहां कहां तक उचित है। हालांकि वक्त बदल चुका है, आज देश में विधवाओं को सम्मान दिया जा रहा है, उन्हें आजादी मिल रही है और कई जगहों पर पुनर्विवाह भी हो रहा है लेकिन अभी भी पूरी तस्वीर बदलने में वक्त लगेगा।
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# शास्त्रों में विधवाओं की दोबारा शादी का प्रावधान नहीं लिखा है इसलिए उनके लिए कुछ नियम बनाये गये हैं जिसके पीछे कई ठोस कारण हैं। शास्त्रों के मुताबिक पति को परमेश्वर कहा जाता है और ऐसे में अगर परमेश्वर का जीवन समाप्त हो जाता है तो महिलाओं को भी संसार की माया-मोह छोड़कर भगवान में मन लगाना चाहिए।
# महिलाओं का ध्यान ना भटके इसलिए उन्हें सफेद वस्त्र पहनने को कहा जाता है क्योंकि रंगीन कपड़े इंसान को भौतिक सुखों के बारे में बताते हैं ऐसे में महिला का पति साथ नहीं होने पर महिलाएं कैसे उन चीजों की भरपाई करेगी इसी बात से बचने के लिए विधवाओं को सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है।
# विधवाओं को साफ सात्विक भोजन करने को कहा जाता है, उनको तला-भूना, मांस-मछली खाने से रोका जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस तरह से भोजन इंसान की काम भावनाओं को बढ़ाते हैं इसलिए विधवाओं को इस तरह से भोजन करने नहीं दिया जाता है।
# देश में कई जगह ऐसे हैं जहां आज भी विधवाओं के बाल काट दिये जाते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि केश महिलाओं का श्रृंगार होता है जो कि उसकी खूबसूरती को बयां करते हैं। किसी और पुरूष की नजर उसकी सुंदरता पर ना पड़े इस कारण विधवाओं के बाल काट दिये जाते हैं।
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