Thursday, June 26, 2025
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मैनपुरी के दिहुली नरसंहार: 44 साल बाद अदालत का फैसला

मैनपुरी जिले के दिहुली गांव में 1981 में हुए सामूहिक नरसंहार के मामले में अभियोजन पक्ष ने पांच गवाहों को अदालत में पेश किया। गवाहों में लायक सिंह, बेदराम, हरिनरायण, कुमर प्रसाद और बनवारी लाल शामिल थे। इन गवाहों ने अदालत के समक्ष उस खौफनाक घटना का विवरण दिया, जिसने पूरे गांव को दहला दिया था।

लायक सिंह की गवाही

गवाह और मुकदमे के वादी लायक सिंह ने अदालत को बताया कि 18 नवंबर 1981 को शाम करीब 5 बजे, जब वह अपने भाई के खेत से लौट रहे थे, तो उन्होंने देखा कि 20-21 लोग राइफल, बंदूक और तमंचा लिए गांव की ओर आ रहे थे। उन्होंने कुएं के पास एक गड्ढे में छिपकर देखा कि इन लोगों के पास हथियार थे। इनमें राधे, संतोष, कप्तान, कमरूद्दीन, रामसेवक, श्यामवीर और कुंवरपाल शामिल थे।

लायक सिंह ने बताया कि सबसे पहले ज्वाला प्रसाद, जो अपने आलू के खेत में काम कर रहे थे, को गोली मारी गई। इसके बाद हमलावर गांव में घुसे और लूटपाट के साथ-साथ फायरिंग शुरू कर दी। इस हमले में कई घर जला दिए गए और 23 दलितों की हत्या कर दी गई।

गवाहों का बयान

गवाहों ने बताया कि हमले के बाद गांव में चारों ओर लाशें बिखरी पड़ी थीं।

  • ज्वाला प्रसाद: खेत में मारे गए।
  • अन्य पीड़ित: रामसेवक, शीला देवी, धन देवी, गजाधर सिंह, मुनेश, गंगा सिंह, श्रृंगार मती, शिवदयाल, दुलारी, राजेंद्र, शांति देवी, आशा देवी, और अन्य।

घटना का कारण

लायक सिंह ने बताया कि घटना से करीब सवा साल पहले पुलिस ने राधे और संतोष के गिरोह के दो सदस्यों को गिरफ्तार किया था। इस दौरान गांव के कुछ लोगों ने गवाही दी थी, जिससे गिरोह ने गांव वालों के खिलाफ दुश्मनी पाल ली थी।

नरसंहार के बाद दावत

गवाह वेदराम ने बताया कि हमले के बाद आरोपी ठाकुरों के मोहल्ले में चले गए और वहां रात तक रुके। उन्होंने लूटपाट के बाद दावत भी की।

44 साल बाद न्याय

दिहुली में 24 दलितों की हत्या के इस मामले में 44 साल बाद अदालत ने मंगलवार को तीन आरोपियों को दोषी ठहराया।

  • दोषी: कप्तान सिंह, रामसेवक, और रामपाल।
  • भगोड़ा आरोपी: ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना।

अदालत ने तीनों दोषियों को आईपीसी की विभिन्न धाराओं, जैसे 302 (हत्या), 307 (जानलेवा हमला), और 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र), में दोषी करार दिया। 18 मार्च को उन्हें सजा सुनाई जाएगी।

सजा का फैसला

दोषियों को जेल भेज दिया गया है, और गैर-जमानती वारंट जारी कर भगोड़े आरोपी की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए हैं।

44 साल की लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार पीड़ित परिवारों को न्याय मिला, लेकिन यह घटना भारतीय न्याय व्यवस्था और समाज के लिए कई सवाल छोड़ गई है।

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