द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाज़ी जर्मनी के खौफ़नाक कैंपों में लाखों यहूदी जल कर खाक हो गए थे. इस घटना के बाद पूरे विश्व ने प्रण लिया था कि दोबारा हिटलर जैसे तानाशाह को पनपने नहीं देंगे और इस तरह के हालातों को पैदा नहीं होने देंगे.

लेकिन यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हिटलर का राज ख़त्म होने के एक दशक से भी कम समय में उत्तर कोरिया के अपने खुद के क्रूर कैंप खोल लिए थे.

एमनेस्टी इंटरनेशनल और उत्तर कोरिया में कमिटी फ़ॉर ह्यूमन राइट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 4 लाख से ज़्यादा लोग अब तक इन कैंपों में मर चुके हैं. वहीं उत्तर कोरिया ने लगातार इन रिपोर्ट्स को ख़ारिज किया है. लेकिन किम जोंग उन सैटेलाइट तस्वीरों से नहीं छिप सकता है. इसके अलावा वहां से निकलने में कामयाब रहे कुछ कैदी भी इन जेलों की भयावह दास्तां को दुनिया के सामने रख रहे हैं.

अगर आपको अपनी लाइफ़ मुश्किल लगती है तो आपको उत्तर कोरिया के कैदियों की इन रूह कंपाते हालातों के बारे में जानने की ज़रूरत है

25 मिलियन की जनसंख्या वाले उत्तर कोरिया में लगभग 2 लाख लोग तो इन क्रूर कैंपों में ही बंद हैं.

 

यहां समय बिताने वाले पूर्व कैदियों का कहना है कि इन जेलों के हालात इतने दयनीय हैं कि यहां हर साल 20 से 25 प्रतिशत कैदियों की मौत हो जाती है.

Shin Dong-hyuk ऐसे ही एक कैंप के अंदर पैदा हुए थे और 23 साल बिताने के बाद वे इस नर्क भरे माहौल से निकल पाने में कामयाब रहे.

यहां मौजूद कैदियों को केवल एक तरीके के कपड़े दिए जाते हैं और न हीं इन्हें नहाने के लिए साबुन, न पहनने के लिए अंडरगारमेंट्स और न ही सैनिटरी नैपकिंस मिलते हैं. सज़ा के तौर पर घंटों खड़े रहना, कई बार नींद को टॉर्चर की तरह इस्तेमाल करना और बेरहमी से पिटाई करना आम रूटीन में शामिल है.

एक पूर्व जेल अधिकारी ने बताया, कैदियों को सुबह साढ़े तीन बजे उठा दिया जाता है, सुबह साढ़े चार बजे काम के लिए निकला जाता है और अंधेरा होने तक उनसे काम लिया जाता है. वो 12 मील पैदल चलकर मैदान पहुंचकर रात तक काम करते हैं. एक पूर्व कैदी के अनुसार, मैंने कैदियों को अपनी खुद की कब्र खोदते देखा है और फिर उन्हें इस कब्र के सामने खड़े होने को कहा जाता है और हथौड़े से हत्या कर कैदियों को वहीं दफ़ना दिया जाता है.

उन्होंने कहा कि कैंप से बाहर भी कई लोग गरीबी और भूख से इतना तड़प रहे होते हैं कि वो लोगों के घर के बाहर बंधे कुत्तों और गाय को खा जाते हैं और तो और पशुओं के गोबर में सने मक्के के दानों को भी लोग निकाल कर खाने लगते हैं. जो महिलाएं प्रेग्नेंट होती हैं, उन्हें या तो ज़बरदस्ती गर्भपात करा दिया जाता है या फिर उन्हें इतना काम दिया जाता है कि ज़्यादातर केसों में बच्चों की गर्भ में ही मौत हो जाती है.

यहां मौजूद कैदियों को कई कारणों से पीटा जाता है. जल्दी-जल्दी काम न करना, देशभक्ति से भरे गानों में शब्दों को भूल जाना, या फिर अगर गार्ड्स को झूठ बोलने का शक़ हो तो भी मार पड़ने लगती है. इनमें से ज़्यादातर कैदी काम और खाने की तलाश में चीन में घुसने की कोशिश करते हैं लेकिन पकड़े जाने पर उत्तर कोरिया ख़तरनाक जेलों में उन्हें कई बार अपनी ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ जाती है.

एक शख़्स के अनुसार, एक बार मुझे मारा गया क्योंकि मैंने एक गार्ड को टॉयलेट जाने के लिए पूछा था लेकिन गार्ड ने मुझे जाने नहीं दिया पर मेरी हालत इतनी खराब थी कि मैंने उसका कहा नहीं माना और मैं चला गया. गार्ड्स ने इसके बाद गन साफ़ करने वाली रॉड से मेरी पिटाई की, मुझे खून आने लगा तो मुझे दवा देने की जगह मेरे ज़ख्मों पर सिगरेट की एश डाल दी ताकि खून का आना बंद हो सके.

शिन के अनुसार, मैं बेहद भाग्यशाली था कि मैं वहां से भाग पाया, बहुत कम लोग ऐसा कर पाते हैं क्योंकि बहुत कम लोग ऐसा करने की हिम्मत जुटा पाते हैं. इसका कारण ये है कि जब भी कभी कोई कैदी भागने की कोशिश करता पकड़ा जाता है, तो सभी कैदियों के सामने उसे खत्म कर दिया जाता है ताकि ऐसी हिमाकत करने पर वो अपने हश्र को जान सकें.

भुखमरी बेहद आम समस्या है. जेल में क़ैदियों को केवल कॉर्नमील और कैबैज ही दिया जाता है. हम हमेशा भूखे रहते थे और वहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड्स हमसे हमेशा कहा करते थे कि भूख के सहारे तुम्हें अपनी ग़लतियों का पछतावा होता रहेगा. इन जेलों में मौजूद लोगों को कई बार कीड़े और चूहे खाकर अपना गुज़ारा करना पड़ता था ताकि वे महज ज़िंदा रह सकें.

खाने में प्रोटीन और कैल्शियम न होने और मैदानों में भारी वज़न लादने के चलते कई लोगों को कुबड़ेपन की समस्या घेर लेती है और कुपोषण और कूबड़ के चलते ये लोग बेहद लचर हो जाते हैं.

इन कैंपों में मौजूद सिक्योरिटी गार्ड इन कैदियों से दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं और उन्हें इंसान ही नहीं समझते हैं. इन लोगों को डराया जाता है, भयानक तरीकों से टॉर्चर किया जाता है. कई बार तो सिर्फ़ अपने मज़े के लिए कैदियों के साथ क्रूर व्यवहार किया जाता है. शिन ने बताया कि एक बार फ़ैक्ट्री में काम करने के दौरान उससे एक मशीन टूट गई थी तो सज़ा के तौर पर उसकी उंगली के ऊपरी हिस्से को ही काट दिया गया था.

13 साल की उम्र में शीन को एक अंडरग्राउंड टॉर्चर सेंटर में भेजा गया था क्योंकि शीन की मां और बड़े भाई ने जेल से भागने की कोशिश की थी. भूख से तड़पते शीन को आग से टॉर्चर किया जाता था. महिलाओं के साथ ही भी क्रूरता या बेरहमी में किसी भी तरह की रियायत नहीं बरती जाती थी.

ये कैंप केवल उत्तर कोरिया तक ही सीमित नहीं हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रशासन इन कैदियों को गुलाम के तौर पर साइबेरिया भी भेजता है. यहां इन कैदियों को औसतन 5-10 सालों के लिए अपने देश के मान के लिए ड्यूटी पर भेज दिया जाता है. एक और रिपोर्ट के अनुसार, इसकी बड़ी संभावना है कि 2013 में कुछ कैंप्स के बंद होने की वजह से लगभग 2 हज़ार कैदियों को भूख और बीमारी से मरता छोड़ दिया गया था. इन कैंपों के बाहर रहने वाले लोग यहां की क्रूरता से अनभिज्ञ नहीं हैं तभी वो डरे सहमे अपने सुप्रीमो की हां में हां मिलाते हैं.

बद से बदतर हालातों में जीने वाले यहां के लोग क्या कभी किम जोंग उन के अत्याचारों के खिलाफ़ क्रांति का दामन थामेंगे?

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