डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम  एक विलक्षण किंतु सहज बुद्धि के व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी प्रतिभा पर कभी घमण्ड नहीं किया। उनकी हंसी में एक अबोध बालक की प्राकृतिक हंसी की झलक साफ देखी जा सकती थी। हम सबकों गर्व होना चाहिए कि हम उस युग में है जिसने अब्दुल कलाम को काम करते देखा है। हमारी आने वाली पीढिया निश्चय ही इस बात पर गर्व करेगी कि हमारे पूर्वजों ने कलाम साहब को देखा, सुना और समझा था। एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम लड़का जो अपने भाई बहिनों में सबसे छोटा था, जिसको अपनी पढाई के खर्च के लिए अखबार तक बेचने पड़े । हम आपकों यहां उनसे जुड़े ऐसे किस्से बताने जा रहे है जिन्होंने उनके व्यवहार, स्वभाव, विचारों और चिंतन की पवित्रता को हर भारतीय के सामने पेश किया है

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# डॉ कलाम कितने संवेदनशील थे। इसका वाकया DRDO में उनके साथ काम कर चुके लोग बताते हैं।  1982 में वो DRDO यानी भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में डायरेक्टर बनकर आए थे। DRDO की सुरक्षा को और पुख्ता करने की बात उठी।  उसकी चारदीवारी पर कांच के टुकड़े लगाने का प्रस्ताव भी आया। लेकिन कलाम ने इसकी सहमति नहीं दी।  उनका कहना था कि चारदीवारी पर कांच के टुकड़े लगे..तो उस पर पक्षी नहीं बैठ पाएंगे और उनके घायल होने की आशंका भी बढ़ जाएगी।  उनकी इस सोच का नतीजा था कि DRDO की दीवारों पर कांच के टुकड़े नहीं लगे।

# मौका था साल 2013 में IIT वाराणसी में दीक्षांत समारोह का बतौर मुख्य अतिथि वहां पहुंचे डॉक्टर कलाम ने कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया। क्योंकि वो वहां मौजूद बाकी कुर्सियों से बड़ी थी। कलाम बैठने के लिए तभी राजी हुए जब आयोजकों ने बड़ी कुर्सी हटाकर बाकी कुर्सियों के बराबर की कुर्सी मंगवाई।

# डॉ कलाम ने कभी अपने या परिवार के लिए कुछ बचाकर नहीं रखा।  राष्ट्रपति पद पर रहते ही उन्होंने अपनी सारी जमापूंजी और मिलने वाली तनख्वाह एक ट्रस्ट के नाम कर दी।  उऩ्होंने कहा था कि चूंकि मैं देश का राष्ट्रपति बन गया हूं, इसलिए जबतक जिंदा रहूंगा सरकार मेरा ध्यान आगे भी रखेगी ही, तो फिर मुझे तन्ख्वाह और जमापूंजी बचाने की क्या जरूरत।

# अब्दुल कलाम 2002 से 2007 तक प्रेसिडेंट रहे। इसी बीच 2006 में उनके परिवार वाले उनसे मिलने के लिए दिल्ली आए, यह कुल 52 लोग थे। कलाम ने उन सबकों बड़े स्नेह से रखा और उनकी आवभगत की। वे करीब 9 दिन तक राष्ट्रपति भवन में रहे। उनके जाने के बाद अब्दुल कलाम ने उनके 9 दिन रहने का किराया लगभग साढें तीन लाख रूपयें अपनी जेब से दिए और चेक काटकर राष्ट्रपति कार्यालय भिजवाया गया।

# अब्दुल कलाम मुस्लिम थे, लेकिन उन्हें भारत के हर धर्म का व्यक्ति दिल से चाहता था। वे अपने आपकों सबसे पहले भारतीय मानते थे, उसके बाद धार्मिक। उनके प्रेसिडेंट कार्यकाल के दौरान 2002 में राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी के जगह उस पर होने वाले खर्च (लगभग 2.50 लाख) को अनाथालयों के बच्चों को खाद्य सामग्री, कंबल, कपड़े आदि बांटे गए तथा उन्होंने अपनी तरफ से भी एक लाख रूपयें इस कार्य के लिए सहयोग रूप में दिए। कलाम साहब नमाज पढ़ते थे और अक्सर हिंदू धर्मगुरूओं से उनके चरणों में बैठकर आशीर्वाद लिया करते थे।

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