बोर्ड के मुताबिक, यदि कोई लड़का या लड़की 21 वर्ष से पहले शादी करने की आवश्यकता महसूस करता है। वहीं शादी के बाद के सभी दायित्व का निर्वहन करने में सक्षम है, तो उसको शादी करने से रोक देना अत्याचार एक वयस्क व्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप होगा।
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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि, शादी मानव जीवन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, लेकिन शादी किस आयु में हो इसके लिए किसी नियत आयु को मानक नहीं बनाया जा सकता।
केवल इस्लाम नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी शादी की कोई उम्र तय नहीं की गयी है, बल्कि इसको उस धर्म के मानने वालों के स्वविवेक पर रखा गया है। समाज में इसके कारण अपराध को बढ़ावा मिल सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि, 21 वर्ष शादी की न्यूनतम आयु तय कर देना इससे पूर्व शादी को कानून के विरुद्ध घोषित करना न लड़कियों के हित में न ही समाज के लिए लाभदायक है। इससे नैतिक मूल्यों को हानि पहुंच सकती है, वैसे भी कम आयु में शादी करने का रिवाज धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है, लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी आती हैं कि तय आयु से पूर्व ही निकाह कर देने में लड़की का लाभ होता है।
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