राजस्थान में चुनावी साल है और 200 सीटों पर विधानसभा चुनाव होने में अब केवल दो महीनों से भी कम वक्त रह गया है. साल के आखिर में नवंबर और दिसम्बर में चुनाव होने हैं. एक ओर जहां पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता वापसी का रास्ता तलाश रही है, वहीं कांग्रेस गहलोत सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं के सहारे सत्ता को रिपीट करा राजस्थान में इतिहास रचने की ताक में है. इस बार विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस में कड़ी टक्कर की संभावना है, वहीं प्रदेश की राजनीति में आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, AIMIM, शिवसेना और कुछ नई पार्टियों ने कांग्रेस एवं बीजेपी दोनों को परेशानी में डाल दिया है. बसपा और सपा तो पहले से ही मौजूद है. इधर, हाड़ौती क्षेत्र में एक बार फिर बीजेपी और कांग्रेस में काफी करीबी टक्कर की आशंका जताई जा रही है. हालांकि 2003 से 2018 तक हर चुनाव में बीजेपी का पलड़ा भारी रहा है लेकिन इस बार मुकाबला कांटे का हो सकता है
कोटा संभाग का हाड़ौती क्षेत्र एक बार फिर से राजनीतिक जोर आजमाइश के लिए तैयार हो रहा है. यहां रिवर फ्रंट तैयार करा कांग्रेस ने कई जिलों की कायाकल्प करते हुए उनका रूप निखारा है. कोटा जिले की चंबल नदी पर बनाया गया रिवर फ्रंट का लोकार्पण इसी माह हुआ है. यह स्थानीय विधायक एवं सरकार में मंत्री शांति धारीवाल का गृह जिला है. वैसे तो हाड़ौती का मिजाज बीजेपी को रास आता है लेकिन इस बार अंदरूनी गुटबाजी का शिकार बीजेपी के लिए राह आसान होते नजर नहीं आ रही है.
हाड़ौती की धरती की यह भी एक खास बात है कि यहां मुकाबले में केवल बीजेपी और कांग्रेस ही रही है. थर्ड फ्रंट को यहां पसंद नहीं किया जाता है. चंबल और काली सिंध नदी के इस इलाके में तीसरे दल को एंटी नहीं मिल पाई है. 2003 से लेकर अब तक हुए 4 विधानसभा चुनावों में अब तक यहां बीजेपी का ही दबदबा रहा है. कांग्रेस हमेशा नंबर दो पर रही है. यहां तक की झालावाड़ में तो कांग्रेस पिछले दो चुनावों से खाता तक नहीं खोल सकी है. हालांकि 2003 में यहां से दो निर्दलीय प्रत्याशियों ने बाजी मारी है लेकिन वे किसी राजनीतिक दल से नहीं थे. 2013 के चुनावों में बीजेपी ने यहां 16 सीटों पर कब्जा जमाया था जबकि कांग्रेस अपना खाता खोल पाने में सफल रही. फिर यहां दोनों तरफ टिकटों के लिए एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है.